Sunday, October 17, 2010

विजयदशमी की बधाई !!


दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है।....विजयदशमी की हार्दिक बधाई !!

Wednesday, October 13, 2010

अंडमान में मनाया गया विश्व डाक दिवस

भारतीय डाक विभाग द्वारा विश्व डाक दिवस प्रधान डाकघर पोर्टब्लेयर में मनाया गया और इस दौरान राष्ट्रीय डाक सप्ताह का आयोजन 9 अक्टूबर-15 अक्टूबर के दौरान किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए अंडमान निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि 9 अक्टूबर 1874 को ‘‘जनरल पोस्टल यूनियन‘‘ (वर्तमान में यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन या विश्व डाक संघ) के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था, इसी कारण 9 अक्टूबर को कालान्तर में ‘‘विश्व डाक दिवस‘‘ के रूप में मनाना आरम्भ किया गया। यह संधि 1 जुलाई 1875 को अस्तित्व में आयी, जिसके तहत विभिन्न देशों के मध्य डाक का आदान-प्रदान करने संबंधी रेगुलेसन्स शामिल थे। कालान्तर में 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम परिवर्तित कर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन कर दिया गया। यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था, जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना। जनसंख्या और अन्तर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर उस समय सदस्य राष्ट्रों की 6 श्रेणियां थीं और भारत आरम्भ से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा। 1947 में यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेंसी बन गई। श्री कृष्ण कुमार यादव ने इस रोचक तथ्य की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया कि विश्व डाक संघ के गठन से पूर्व दुनिया में एक मात्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन रेड क्रास सोसाइटी (1870) था।

इस अवसर पर प्रीमियम सेवाओं से संबंधित कारपोरेट कस्टमर मीट/बिजनेस मीट का आयोजन हुआ । विभिन्न प्रीमियम सेवाओं मसलन- स्पीड पोस्ट, एक्सप्रेस पार्सल पोस्ट, बिजनेस पोस्ट, बिल मेल सर्विस, डायरेक्ट पोस्ट, मीडिया पोस्ट, ई-पोस्ट, ई-पेमेण्ट, लाजिस्टिक पोस्ट, फ्री पोस्ट और इलेक्ट्रानिक इंटीमेशन आॅफ डिलीवरी इत्यादि के संबंध में जानकरी दी गई। डाक सेवा निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने संबोधित करते हुए कहा कि व्यवसायिकता के इस दौर में बिना स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा के कोई भी संगठन उन्नति नहीं कर सकता और डाक विभाग भी इस क्षेत्र में तमाम नये कदम उठा रहा है। डाक विभाग जहाँ नित् नई सेवायें लागू कर रहा है, विभाग ने अपनी परम्परागत छवि को प्रतिस्पर्धा के तहत कारपोरेट इमेज में तब्दील किया है।घर-घर जाकर डाकियों द्वारा डाक का एकत्रीकरण, वन इण्डिया-वन रेट के तहत स्पीड पोस्ट सेवा दरों में कमीं, इन्स्टेन्ट मनी आर्डर, सभी बचत सेवाओं हेतु फाइनेन्स मार्ट, विभिन्न कम्पनियों के म्युचुअल फण्ड व बीमा उत्पादों की बिक्री, कम्प्यूटराइजेशन व प्रोजेक्ट एरो के तहत डाकघरों का आधुनिकीकरण व नवीनतम टेक्नोलाजी का प्रयोग जैसे तमाम कदमों ने डाकघरों का चेहरा बदल डाला है। श्री यादव ने कहा कि एक तरफ विभिन्न कारपोरेट एवं सरकारी व अद्र्व सरकारी विभागों की आवश्यकतानुसार तमाम सेवायें आरम्भ की गई हैं, वहीं बुक नाउ-पे लेटर, बल्क मेल पर छूट, फ्री पिकअप जैसी स्कीमों के तहत डाक सेवाओं को और आकर्षक बनाया गया है। श्री यादव ने कहा कि नेटवर्क की दृष्टि से डाकघर बचत बैंक देश का सबसे बड़ा रीटेल बैंक (लगभग 1.5 लाख शाखाओं, खातों और वार्षिक जमा-राशि का संचालन, 31 मार्च 2007 को कुल जमा राशि-3,515,477.2 मिलियन रूपये) है। यह अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2001 में डाकघर में बचत की कुल राशि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7 प्रतिशत बनती है। (विश्व बैंक अध्ययन की अंतिम रिपोर्ट, अगस्त, 2002)। 172 मिलियन से अधिक खाताधारकों के ग्राहक आधार और 1,54,000 शाखाओं के नेटवर्क के साथ डाकघर बचत बैंक देश के सभी बैंकों की कुल संख्या के दोगुने के बराबर है।

श्री यादव ने कहा कि डाक विभाग अपने ग्राहकों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए लोगों से संवाद कायम करना बेहद जरूरी है। इस परिप्रेक्ष्य में प्रोजेक्ट एरो के तहत जहां विभाग ने कोर सेक्टर पर ध्यान दिया है वहीं स्टाफ को ग्राहकों से अच्छे व्यवहार हेतु भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस अवसर पर उन संस्थानों के प्रतिनिधियों का भी सम्मान किया गया, जो कि डाक विभाग को लाखों में व्यवसाय देते हैं। इनमें एक्सीस बैंक के हेड श्री प्रकाश कुमार, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक श्री एस0 सौनन्द, भारतीय स्टेट बैंक के चीफ मैनेजर श्री देबदास चट्टोपाध्याय और वेतन एवं लेखा कार्यलय के निदेशक श्री एन0एम0 पिल्लै शामिल हैं

इस अवसर पर उपस्थित जनों का स्वागत श्री एम0 गणपति, पोस्टमास्टर, प्रधान डाकघर, पोर्टब्लेयर ने किया तथा श्री रंजीत कुमार आदक, आभार-ज्ञापन सहायक अधीक्षक (मुख्यालय), द्वारा किया गया।

(साभार : द्वीप समाचार, 10 अक्तूबर, 2010)

Saturday, October 9, 2010

अहसास की संजीदगी बरकरार है पत्रों में (‘विश्व डाक दिवस‘ 9 अक्तूबर पर विशेष)

पत्रों की दुनिया बेहद निराली है। दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक यदि पत्र अबाध रूप से आ-जा रहे हैं, तो इसके पीछे ‘यूनिवर्सल पोस्टल‘ यूनियन का बहुत बड़ा योगदान है, जिसकी स्थापना 9 अक्टूबर 1874 को स्विटजरलैंड में हुई थी। यह 9 अक्टूबर पूरी दुनिया में ‘विश्व डाक दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। तब से लेकर आज तक डाक-सेवाओं में वैश्विक स्तर पर तमाम क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं और भारत भी इन परिवर्तनों से अछूता नहीं हैं। संचार क्रान्ति के नए साधनों- टेलीफोन, मोबाइल फोन, इण्टरनेट, फैक्स, वीडियो कान्फं्रेसिंग इत्यादि ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज‘ में परिवर्तित कर दिया। देखते ही देखते फोन नम्बर डायल किया और सामने से इच्छित व्यक्ति की आवाज आने लगी। ई-मेल या एस0एम0एस0 के द्वारा चंद सेकेंडों में अपनी बात दुनिया के किसी भी कोने में पहुँचा दी। वैश्विक स्तर पर पहली बार 1996 में संयुक्त राज्य अमेरिका में ई-मेल की कुल संख्या डाक सेवाओं द्वारा वितरित पत्रों की संख्या को पार कर गई और ऐसे में पत्रों की प्रासंगिकता पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लगे।

सभ्यता के आरम्भ से ही मानव किसी न किसी रूप में पत्र लिखता रहा है। दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात पत्र 2009 ईसा पूर्व का बेबीलोन के खण्डहरों से मिला था, जोकि वास्तव में एक प्रेम पत्र था और मिट्टी की पटरी पर लिखा गया था। कहा जाता है कि बेबीलोन की किसी युवती का प्रेमी अपनी भावनाओं को समेटकर उससे जब अपने दिल की बात कहने बेबीलोन तक पहुँचा तो वह युवती तब तक वहाँ से जा चुकी थी। वह प्रेमी युवक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसने वहीं मिट्टी के फर्श पर खोदते हुए लिखा-‘‘मैं तुमसे मिलने आया था, तुम नहीं मिली।‘‘ यह छोटा सा संदेश विरह की जिस भावना से लिखा गया था, उसमें कितनी तड़प शामिल थी। इसका अंदाजा सिर्फ वह युवती ही लगा सकती थी जिसके लिये इसे लिख गया। भावनाओं से ओत-प्रोत यह पत्र 2009 ईसा पूर्व का है और इसी के साथ पत्रों की दुनिया नेे अपना एक ऐतिहासिक सफर पूरा कर लिया है।

जब संचार के अन्य साधन न थे, तो पत्र ही संवाद का एकमात्र माध्यम था। पत्रों का काम मात्र सूचना देना ही नहीं बल्कि इनमें एक अजीब रहस्य या गोपनीयता, संग्रहणीयता, लेखन कला एवं अतीत को जानने का भाव भी छुपा होता है। पत्रों की सबसे बडी विशेषता इनका आत्मीय पक्ष है। यदि पत्र किसी खास का हुआ तो उसे छुप-छुप कर पढ़ने में एवम् संजोकर रखने तथा मौका पाते ही पुराने पत्रों के माध्यम से अतीत में लौटकर विचरण करने का आनंद ही कुछ और है। यह सही है कि संचार क्रान्ति ने चिठ्ठियों की संस्कृति को खत्म करने का प्रयास किया है और पूरी दुनिया को बहुत करीब ला दिया है। पर इसका एक पहलू यह भी है कि इसने दिलों की दूरियाँ इतनी बढ़ा दी हैं कि बिल्कुल पास में रहने वाले अपने इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों की भी लोग खोज-खबर नहीं रखते। ऐसे में युवा पीढ़ी के अंदर संवेदनाओं को बचा पाना कठिन हो गया है। तभी तो पत्रों की महत्ता को देखते हुए एन0सी0ई0आर0टी0 को पहल कर कक्षा आठ के पाठ्यक्रम में ‘‘चिट्ठियों की अनोखी दुनिया‘‘ नामक अध्याय को शामिल करना पड़ा।

पत्र लेखन सिर्फ संचार का माध्यम नहीं, बल्कि एक सशक्त विधा है। स्कूलों में जब बच्चों को पत्र लिखना सिखाया जाता है तो अनायास ही वे अपने माता-पिता, रिश्तेदारों या मित्रों को पत्र लिखने का प्रयास करने लगते हैं। पत्र सदैव सम्बंधों की उष्मा बनाये रखते हैं। पत्र लिखने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें कोई जल्दबाजी या तात्कालिकता नहीं होती, यही कारण है कि हर छोटी से छोटी बात पत्रों में किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त हो जाती है जो कि फोन या ई-मेल द्वारा सम्भव नहीं है। पत्रों की सबसे बड़ी विशेषता इनका स्थायित्व है। कल्पना कीजिये जब अपनी पुरानी किताबों के बीच से कोई पत्र हम अचानक पाते हैं, तो लगता है जिन्दगी मुड़कर फिर वहीं चली गयी हो। जैसे-जैसे हम पत्रोें को पलटते हैं, सम्बन्धों का एक अनंत संसार खुलता जाता है। व्यक्ति पत्र तात्कालिक रूप से भले ही जल्दी-जल्दी पढ़ ले पर फिर शुरू होती है-एकान्त की खोज और फिर पत्र अगर किसी खास के हों तो सम्बन्धों की पवित्र गोपनीयता की रक्षा करते हुए उसे छिप-छिप कर बार-बार पढ़ना व्यक्ति को ऐसे उत्साह व ऊर्जा से भर देता है, जहाँ से उसके कदम जमीं पर नहीं होते। वह जितनी ही बार पत्र पढ़ता है, उतने ही नये अर्थ उसके सामने आते हैं।

सिर्फ साधारण व्यक्ति ही नहीं बल्कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भी पत्रों के अंदाज को जिया है। माक्र्स-एंजिल्स के मध्य ऐतिहासिक मित्रता का सूत्रपात पत्रों से ही हुआ। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उस स्कूल के प्राचार्य को पत्र लिखा, जिसमें उनका पुत्र अध्ययनरत था। इस पत्र में उन्होंने प्राचार्य से अनुरोध किया था कि उनके पुत्र को वे सारी शिक्षायें दी जाय, जो कि एक बेहतर नागरिक बनने हेतु जरूरी हैं। इसमें किसी भी रूप में उनका पद आडे़ नहीं आना चाहिये। महात्मा गाँधी तो पत्र लिखने में इतने सिद्धहस्त थे कि दाहिने हाथ के साथ-साथ वे बाएं हाथ से भी पत्र लिखते थे। पं0 जवाहर लाल नेहरू अपनी पुत्री इन्दिरा गाँधी को जेल से भी पत्र लिखते रहे। ये पत्र सिर्फ पिता-पुत्री के रिश्तों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें तात्कालिक राजनैतिक एवं सामाजिक परिवेश का भी सुन्दर चित्रण है। इन्दिरा गाँधी के व्यक्तित्व को गढ़ने में इन पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। आज ये किताब के रूप में प्रकाशित होकर ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुके हैं। इन्दिरा गाँधी ने इस परम्परा को जीवित रखा एवं दून में अध्ययनरत अपने बेटे राजीव गाँधी को घर की छोटी-छोटी चीजों और तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक परिस्थितियों के बारे में लिखती रहीं। एक पत्र में तो वे राजीव गाँधी को रीवा के महाराज से मिले सौगातों के बारे में भी बताती हैं। तमाम राजनेताओं-साहित्यकारों के पत्र समय-समय पर पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होते रहते हैं। इनसे न सिर्फ उस व्यक्ति विशेष के संबंध में जाने-अनजाने पहलुओं का पता चलता है बल्कि तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश के संबंध में भी बहुत सारी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इसी ऐतिहासिक के कारण आज भी पत्रों की नीलामी लाखों रूपयों में होती हैं।

कहते हैं कि पत्रों का संवेदनाओं से गहरा रिश्ता है और यही कारण है कि पत्रों से जुड़े डाक विभाग ने तमाम प्रसिद्ध विभूतियों को पल्लवित-पुष्पित किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन पोस्टमैन तो भारत में पदस्थ वायसराय लार्ड रीडिंग डाक वाहक रहे। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक व नोबेल पुरस्कार विजेता सी0वी0 रमन भारतीय डाक विभाग में अधिकारी रहे वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र पोस्टमास्टर थे। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, मशहूर फिल्म अभिनेता देवानन्द डाक कर्मचारी रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल डाक विभाग में ही क्लर्क रहे। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी ने आरम्भ में डाक-तार विभाग में काम किया था तो प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु भी पोस्टमैन रहे। सुविख्यात उर्दू समीक्षक पद्मश्री शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कमल किशोर गोयनका , महाराष्ट्र के प्रसिद्ध किसान नेता शरद जोशी, सहित तमाम विभूतियाँ डाक विभाग की गोद में अपनी सृजनात्मक-रचनात्मक काया का विस्तार पाने में सफल रहीं।

भारतीय परिपे्रक्ष्य में इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत एक कृषि प्रधान एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला देश है, जहाँ 70 फीसदी आबादी गाँवों में बसती है। समग्र टेनी घनत्व भले ही 60 का आंकड़ा छूने लगा हो पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह बमुश्किल 15 से 20 फीसदी ही है। यदि हर माह 2 करोड़ नए मोबाइल उपभोक्ता पैदा हो रहे हैं तो उसी के सापेक्ष डाक विभाग प्रतिदिन दो करोड़ से ज्यादा डाक वितरित करता है। 1985 में यदि एस0एम0एस0 पत्रों के लिए चुनौती बनकर आया तो उसके अगले ही वर्ष दुतगामी ‘स्पीड पोस्ट‘ सेवा भी आरम्भ हो गई। यह एक सुखद संकेत है कि डाक-सेवाएं नवीनतम टेक्नाॅलाजी का अपने पक्ष में भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। ‘ई-मेल‘ के मुकाबले ‘ई-पोस्ट‘ के माध्यम से डाक विभाग ने डिजिटल डिवाइड को भी कम करने की मुहिम छेड़ी है। आखिरकार अपने देश में इंटरनेट प्रयोक्ता महज 7 फीसदी हंै। आज डाकिया सिर्फ सिर्फ पत्र नहीं बांटता बलिक घरों से पत्र इकट्ठा करने और डाक-स्टेशनरी बिक्री का भी कार्य करता है। समाज के हर सेक्टर की जरूरतों के मुताबिक डाक-विभाग ने डाक-सेवाओं का भी वर्गीकरण किया है, मसलन बल्क मेलर्स के लिए बिजनेस पोस्ट तो कम डाक दरों के लिए बिल मेल सेवा उपलब्ध है। पत्रों के प्रति क्रेज बरकरार रखने के लिए खुश्बूदार डाक-टिकट तक जारी किए गए हैं। आई0टी0 के इस दौर में चुनौतियों का सामना करने के हेतु डाक विभाग अपनी ब्रांडिंग भी कर रहा है। ‘प्रोजेक्ट एरो‘ के तहत डाकघरों का लुक बदलने से लेकर काउंटर सेवाओं, ग्राहकों के प्रति व्यवहार, सेवाओं को समयानुकूल बनाने जैसे तमाम कदम उठाए गए हैं। इस पंचवर्षीय योजना में डाक घर कोर बैंकिंग साल्यूशन के तहत एनीव्हेयर, एनी टाइम, एनीब्रांच बैंकिंग भी लागू करने जा रहा है। सिम कार्ड से लेकर रेलवे के टिकट और सोने के सिक्के तक डाकघरों के काउंटरों पर खनकने लगे हैं और इसी के साथ डाकिया डायरेक्ट पोस्ट के तहत पम्फ्लेट इत्यादि भी घर-घर जाकर बांटने लगा है। पत्रों की मनमोहक दुनिया अभी खत्म नहीं हुई है। तभी तो अन्तरिक्ष-प्रवास के समय सुनीता विलियम्स अपने साथ भगवद्गीता और गणेशजी की प्रतिमा के साथ-साथ पिताजी के हिन्दी में लिखे पत्र ले जाना नहीं भूलती। हसरत मोहानी ने यूँ ही नहीं लिखा था-

लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।

(विश्व डाक दिवस पर लिखा यह लेख आकाशवाणी पोर्टब्लेयर से 10 अक्तूबर को समाचार-वार्ता के तहत प्रात: 7: 20 पर प्रसारित)

Monday, October 4, 2010

डाक टिकटों में भी दिख रहा है राष्ट्रमंडल खेलों का जलवा


19वें राष्ट्रमंडल खेल-2010 को आकर्षक व यादगार बनाने के लिए भारतीय डाक विभाग ने टेनिस, तीरंदाजी, हाकी और एथलेटिक्स पर चार डाक-टिकटों का एक विशेष सेट इसके उद्घाटन दिवस पर 03 अक्टूबर,2010 को जारी किया है। 5 रू0 प्रति डाक टिकट मूल्य वाली ये डाक टिकटें इंडिया सिक्योरिटी प्रेस हैदराबाद में वेट-आफसेट तकनीक द्वारा मुद्रित हैं एवं कुल 4 लाख प्रत्येक डाक टिकट जारी किए गए हैं। इस डाक टिकट के साथ ही प्रथम दिवस आवरण व विवरणिका भी जारी की गई है। विवरणिका में 19वें राष्ट्रमंडल खेल, 2010 के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है, वहीँ प्रथम दिवस आवरण पर बैक-ग्राउंड में एयरोस्टेट के चित्र के साथ तीन पदक और राष्ट्रमंडल खेलों का लोगो अंकित है.

गौरतलब है कि इससे पूर्व भारतीय डाक द्वारा विभाग द्वारा शेरा, क्वींस बेटन, तालकटोरा स्टेडियम और जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम पर पहले ही डाक टिकट जारी किया जा चुका है । 25 जून 2010 को राष्ट्रमंडल खेलों पर दो डाक टिकट जारी किये गए थे. इसी दिन क्वीन्स बैटन सभी राष्ट्रमंडल देशों में भ्रमण के बाद भारत पहुँची। इन डाक टिकटों पर क्वीन्स बैटन एवं दूसरे डाक टिकट में दिल्ली के इंडिया गेट की पृष्ठभूमि में गौरवान्वित शेरा को बैटन पकड़े हुए चित्रित किया गया है। क्रमशः 20 और 5 रू0 में जारी ये डाक टिकट इंडिया सिक्योरिटी प्रेस नासिक में फोटोग्रेव्यार तकनीक द्वारा मुद्रित हैं एवं कुल 8 लाख डाक टिकट जारी किए गए. इन डाक टिकटों के साथ-साथ मिनिएचर शीट भी जारी की गई, जिसकी कीमत रू0 25/- है। इसके बाद तालकटोरा स्टेडियम और जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम पर 1 अगस्त, 2010 को 5-5 रूपये के डाक टिकट जारी किये गए, जो कि प्रति डाक टिकट 4-4 लाख जारी किये गए हैं और इंडिया सिक्योरिटी प्रेस नासिक में वेट-आफसेट तकनीक द्वारा मुद्रित हैं. इन डाक टिकटों के साथ भी मिनिएचर शीट जारी की गई.

सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है. डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यही कारण है कि इन डाक-टिकटों का लोगों में बखूबी क्रेज है और विदेशी खिलाड़ी इन्हें स्मृति-चिन्ह के रूप में अपने देश ले जाना चाहते हैं । आज इनकी कीमत भले ही पांच या 20 रुपए है लेकिन भविष्य में ये बहुमूल्य हो जाएंगे। डाक टिकट संग्रह का शौक रखने वाले लोग तो इन्हें भारी संख्या में खरीद रहे हैं। आने वाले दिनों में वाकई यह एक अमूल्य और ऐतिहासिक धरोहर होगी !!

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19वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन 3 अक्तूबर से 14 अक्तूबर, 2010 तक दिल्ली में किया जा रहा है । 1951 तथा 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के बाद दिल्ली में आयोजित होने वाला यह विशालतम बहुस्पर्धात्मक खेल आयोजन हो रहा है. यह भारत में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन का पहला अवसर है, जिसमें 85 देश 17 खेल वर्गों में होने वाली 260 स्पर्धाओं में शामिल होंगें. राष्ट्रमंडल खेल, 2010 का आधिकारिक नारा है, “कम आऊट एंड प्ले“ अर्थात् “उठो, खेलो, जीतो“। यह भारत तथा राष्ट्रमंडल समूह के देशों के हर वर्ग के प्रत्येक व्यक्ति के लिए आमंत्रण है कि इन खेलों की सच्ची भावना के अनुरूप इनमें अपनी पूरी क्षमता के साथ शामिल हों।

राष्ट्रमंडल खेल गाँव में भी पोस्ट आफिस

संचार क्रांति के साथ दौड़ लगाती दुनिया कितनी भी तेज भाग ले, पर डाक-सेवाओं के बिना सब कुछ अधूरा है. तभी तो राष्ट्रमंडल खेल गाँव में भी पोस्ट आफिस अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है. इस डाक घर का पिन कोड 110090 है । यह कार्यालय इंटरनेशनल जोन की कई दुकानों के बीच स्थित है । 16 सितंबर को खुले इस कार्यालय में स्पीड पोस्ट और पंजीयन सहित सभी प्रमुख सुविधाएं मौजूद हैं । यहां विभिन्न आकार के डाक टिकट भी मौजूद हैं। पोस्ट आफिस को लेकर लोग काफी रोमांचित हैं ओर वे कई सारे डाक टिकट खरीद रहे हैं। गौरतलब है कि भारतीय डाक ने राष्ट्रमंडल खेलों को यादगार बनाने के लिए तमाम डाक टिकट जारी किये हैं. इनमें शेरा, क्वींस बेटन, तालकटोरा स्टेडियम और जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम भी शामिल हैं. खिलाड़ियों के बीच ये डाक टिकट काफी प्रसिद्ध हो रहे हैं और वे इन्हें स्मृति-चिन्ह के रूप में अपने देश ले जाना चाहते हैं । इंग्लैंड टीम की अधिकारी मैगी लिनेस का उत्साह तो देखने लायक है- ‘‘खेल गांव में पोस्ट आफिस होना बहुत फायदेमंद है । हर कोई यहां से अपने घर कुछ न कुछ भेजना चाहता है ।’’ मैगी ने कहा कि वह अपने घर रंगीन पोस्टकार्ड और पत्र भेज रही हैं ।....तो आप भी इस डाक-घर से अपने लोगों को खूबसूरत पत्र भेजिए, जिन पर राष्ट्रमंडल से जुड़े डाक-टिकट लगे हों, वाकई यह एक अमूल्य और ऐतिहासिक धरोहर होगी !!

Saturday, October 2, 2010

डाक-टिकटों पर भी छाये गाँधी जी

विश्व पटल पर महात्मा गाँधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -‘‘हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।’’ संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा की तो अमेरिकी कांग्रेस में बापू को दुनिया भर में स्वतंत्रता और न्याय का प्रतीक बताते हुए प्रतिनिधि सभा में उनकी 140वीं जयंती मनाने संबंधी प्रस्ताव पेश किया गया। दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के मुखिया ओबामा तो गाँधी जी के कायल हैं। उनकी माने तो अगर भारत में अहिंसात्मक आंदोलन नहीं होता तो अमेरिका में नागरिक अधिकारों के लिए वैसा ही अहिंसात्मक आंदोलन देखने को नहीं मिलता। निश्चिततः दुनिया का यह दृष्टिकोण आज के दौर में शान्ति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।

महात्मा गाँधी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं/व्यक्तित्व में से हैं. . यही कारण है कि प्राय: अधिकतर देशों ने उनके सम्मान में डाक-टिकट जारी किये हैं. सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है. डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। ऐसे में डाक-टिकटों पर स्थान पाना गौरव की बात हैभारत में सर्वाधिक बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गाँधी जी प्रथम हैं. यहाँ तक कि आजाद भारत में वे प्रथम व्यक्तित्व थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी गांधीजी की स्मृति में डाक-टिकट जारी किया है.

डाक-टिकटों के परिप्रेक्ष्य में याद आया कि स्वतन्त्रता के बाद सन् 1948 में महात्मा गाँधी पर डेढ़ आना, साढे़ तीन आना, बारह आना और दस रू0 के मूल्यों में जारी डाक टिकटों पर तत्कालीन गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने गवर्नमेण्ट हाउस में सरकारी काम में प्रयुक्त करने हेतु ‘‘सर्विस’’ शब्द छपवा दिया। इन आलोचनाओं के बाद कि किसी की स्मृति में जारी डाक टिकटों के ऊपर ‘‘सर्विस’’ नहीं छापा जाता, उन टिकटों को तुरन्त नष्ट कर दिया गया। पर इन दो-तीन दिनों में जारी सर्विस छपे चार डाक टिकटों के सेट का मूल्य दुर्लभता के चलते आज तीन लाख रूपये से अधिक है। वाकई आज गाँधी जी के साथ-साथ उनसे जुडी हर चीजें मूल्यवान हैं, यही कारण है दुनिया भर में उनके प्रशंसक उनसे जुडी चीजों को नीलामी तक में खरीदने के लिए उत्सुक रहते हैं. गाँधी-जयंती पर राष्ट्रपिता का पुनीत स्मरण !!